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समझदार मंत्री मूर्ख राजा

                  
                 चतुर मंत्री मूर्ख राजा 

बहुत समय पहले की बात है एक मूर्ख राजा था। वह युद्ध इसलिए जीतता था क्योंकि उसका मंत्री बहुत चालाक था। एक बार की बात है राजा सैर पर निकला था। उसने देखा की उसके राज्य का पानी दूसरे राज्य में जा रहा है। तब उसने हुक्म दिया कि दूसरा राज्य को पानी नही दिया जायेगा । वहां बांध बना दिया जाये। तब दो महीने में बांध बनकर तैयार हो गया मंत्री ने बहुत समझाया ऐसा ना करे। इससे हमारा ही नुकसान है पर राजा नही माना उसने बांध बनवा दिया और  सारा पानी नगर में आ गया। तब मंत्री ने एक योजना बनाई।  उसने दरबान को कहा कि हर पहर से तीन गुना घण्टी बजाए।  योजना के अनुसार रात हुई तब दरबान प्रत्येक पहर तीन गुना घण्टी बजाने लगा। जब रात के 3. 00 बजे धे तब दरबान ने 6. 00 बजे की घण्टी बजाई। घण्टी की ध्वनि सुनकर राजा उठा और देखा कि आकाश में अंधेरा था। सूरज अभी तक आकाश में नही निकला था। मूर्ख राजा ने सोचा, हमने पङौसी राजा का पानी रोक दिया इसलिए उन्होंन हमारा सूरज छूपा लिया। इस घटना से राजा को पका  विश्वास हो गया और मंत्री को बुलाकर कहा कि 'आप कोई तरकीब निकालो जिससे पङौसी राजा हमारा सूरज हमें लौटा दें।' राजा कि यह बात सुनकर मंत्री को समझ आ गया कि राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया है। मंत्री ने बांध खुलवा दिया। प्रकृति के अनुसार सूर्य उदय हो गया। राजा आकाश में उदय होते सूरज को देखकर खुश हुआ और    जोर - जोर से चिल्लाने लगा कि पङौसी राजा ने हमारा सूरज लौटा दिया है। सभी के चहरों पर मंद - मंद मुस्कान थी। 

शिक्षा :- जब खुद में बुद्धी ना हो तो समझदार व्यक्ति की बात मान लेनी चाहिए। 
     
                             सुनिल सिंघल 
                              कक्षा - 8

"लाडो"

                               "लाडो"
    
         तुम हो सदा प्यारी - प्यारी,
         मेरी नन्ही फुलवारी।
         तुझे देखकर मैं हंसती,
         खिलती कली ह्रदय में खिलती।
         सदा तू खुश रहे, दिल से दुआ निकलती,
         घर मेरा तेरी किलकारी से गूंजे।
         तूं ना चहके तो उदास मन मेरा,
         चले आंगन में जब पग तेरा।
         घर महके सुबह- शाम मेरा,
         बाहर जब तू चली जाये।
         चारों और सन्नाटा छा जाए,
         घर के भीतर जब तू आये।
         सब और उजियारा छा जाए,
         सबको करे तू दुलार, रखे सबका ख्याल।
        अपना रखे नही तू ध्यान,
         करे सबको खुशहाल।
         बाप को कहे राजा, 
         भैया को शहजादा।
         पुकारे अम्मा को रानी, 
         छोटी बहन को राजरानी ।
         अपने को भूला दे, 
         अपने भी भूलाए ।
         कैसी ये भूल - भूलैया,
         फिर भी ये दुनिया।
         बेटी को माने अभागन।
         दुआ मेरी तुझको, 
         महके सदा तेरा घर- आंगन। 

                                                  सुनीला देवी
                                          स्टाफ - हिन्दी शिक्षिका

कन्या भ्रूण हत्या

                     कन्या भ्रूण हत्या

अगर मेरा दुनिया में आना, 
भी तुमको मंजूर नहीं।
जिस दिन तरसोगे बेटी को, 
वो दिन दूर नहीं। 
                                

                                   अपना ही था खून तुम्हारा, 
                                   जिसको कोख में मार दिया।
                                   आज की बेटी कल की माँ है, 
                                   ये भी नहीं विचार किया।
                                   जान के भी अनजान बन गए, 
                                   होगा माफ कसूर नहीं।
                                   जिस दिन तरसोगे बेटी को, 
                                   वो दिन ज्यादा दूर नहीं।


बेटी हुई तो छाती पिटे,
बेटा हुआ तो फूल गई।
वंश चले न बिन बेटी के,
शायद तुम ये भूल गई।
बेटा लाभ हि बेटी हानि,
क्या ये बुरा फितूर नही।
जिस दिन तरसोगे बेटी को,
वो दिन ज्यादा दूर नही।
                                    

                                      माँ होगी ना बहन, 
                                      न पत्नि क्या होगी दुनिया में ।
                                      सोचो जब नारी ही न होगी.
                                      क्या होगा फिर दुनिया में ।
                                      बिन धरती कोई बीज भी पनपे, 
                                       कुदरत का दस्तूर नही ।
                                       जिस दिन तरसोगे बेटी को, 
                                       वो दिन ज्यादा दूर नही।


क्या खूब जवाब था एक बेटी का,
जब उससे पूछा गया।
की तुम्हारी दुनिया कंहा से शुरू होती है,
और कंहा पर खत्म। 
बेटी का जवाब था ।
माँ की कोख से शुरू होकर, 
पिता के चरणो से गुजर कर। 
पति की खुशी की गलियों से होकर,
बच्चों के सपनों को पूरा करने तक खत्म। 


                                       बेटी बचाओ 
                                       बेटी पढाओ 
                                      बेटी ही है सब कुछ है।

                                              हर्षिता शेखावत 
                                                 कक्षा - 5

सामान्य ज्ञान

                         सामान्य ज्ञान 


1.पूर्वी भारत का सबसे बङा किंतु दुरस्ध प्रदेश है -- अरूणाचल प्रदेश 
2. असम को पूर्व का प्रवेश द्वार कहा जाता है।
3. ब्रह्मपुत्र एक नदी ना होकर एक नद् है।
4. अरूणाचल प्रदेश का नाम सूर्य के एक पर्यायवाची पर पङा।
5. मिजोरम कि सबसे ऊँची चोटी का नाम 'फोनपूई' है ( बीला पर्वत) है और जिसकी ऊँचाई 2210 मीटर है।
6. त्रिपुरा प्रदेश लगभग 75 प्रतिशत बांग्लादेश से घिरा हुआ है।
7. भारत मे सबसे पुराना 18 छेदों वाला गोल्फ का मैदान है। जहाँ पूरे विश्व से खिलाडी खेलने आते है। यह स्थान 'शिलांग ' मेघालय में है।
8. कस्तूरी मृग अभ्यारण्य "केदारनाथ" में स्थित है।
9. "सऊदी अरब " देश ने पहली बार एक महिला राजदूत को नियुक्त किया था।
10. जुलाई 20, 1969 को चांद पर पहला मिशन भेजा । जिसका नाम था अपोलो।
11. हैजा, टाईप, क्षयरोग, सर्दी-जुकाम आदि ये वायु , जल एवं भोजन कीटों के सम्पर्क द्वारा फैलते है।
12. रक्त दान के पश्चात 24 घन्टे तक अधिक परिश्रम और व्यायाम नही करना चाहिए। 
13. हर साल चंद्रमा पृथ्वी से 3.82 सेन्टीमीटर दूर हो जाता है।
14.मकङी का खून पारदर्शी होता है।
15. बिल्लियों की औसत आयु 12 से 15 साल होती है।
16. आदमी के शरीर में हर सैकेंड में आठ मिलियन कोशिकाएँ नष्ट होती है और इतनी नई जन्म लेती है।
17. कछुए के दान्त नही होते है।
18. एक कुत्ते में मनुष्य की अपेक्षा सुनने की शक्ति दस गुणा अधिक होती है।
19. एक सफेद सारस की उम्र 82 वर्ष रिकार्ड की गई है।
20. रेफिलिशिया सबसे बङा पुष्प है।
21. औसतन इंसान Keyboard से टाइप करते समय Left Hand का 56 प्रतिशत प्रयोग करता है।
22. बिल्ली के प्रत्येक कान में 32 मांमपेशिया होती है।

                                            समस्त छात्र-छात्रा
                                                कक्षा - 7 व 8

बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता की माप है

          बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता की माप है

      -- बदलने और बदलाव लाने की क्षमता ही बुद्धिमता का माप है। यह बिल्कुल सत्य है। समय के साथ अच्छे काम के लिए बदलना बहुत जरूरी है और यह ही एक समझदारी है। समय के साथ बहुत सारी चीजें बदल रही है, और बहुत सारे नये आविष्कार हो रहे है।इसलिए सफल होने के लिए हमें भी समय के साथ बदलना चाहिए और नई - नई चीजें और बातों को समझना चाहिए। 

      -- बुद्धिमता यह है कि कोई भी अध्ययन, समझ और सीखने के द्वारा सुधार कर सकता है। बात करे तो हमें अपनी पुरानी सोच को बदलेंगे तभी हम नया सीख पायेंगे। देश आगे बढ पायेगा। और आगे प्रगति होगी।

     -- जिन बातों और सोच में बदलने और अच्छा सीखने को ना मिले तो हमें वह सोच खत्म कर देनी चाहिए। आज भी समाज में बहुत सारी पुरानी बातें है जो लोग मानते है, जैसे लडकियों को स्कूल नही जाने देना, उनकी जल्दी शादी करवा देना, भेद - भाव रखना, जाति - वाद, दहेज प्रथा, यह सब हमें खत्म करने की जरूरत है। इसी पुरानी सोच के कारण हम पीछे है। हम यह सोच बदलेंगे तभी जीवन का खुबसूरत अनुभव होगा। बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता का भाव है यह कथन शत- प्रतिशत सत्य है।

      -- परिवर्तन ही संसार का नियम है यह संसार परिवर्तन से ही चलता है परिवर्तन होते होते ही मानव का जन्म हुआ। परिवर्तन से ही हमारे सुन्दर भारत का निर्माण हुआ है। बदलने की क्षमता से तात्पर्य अपने आप को किसी भी परिस्थितियों के अनुकूल बनाने की योग्यता अथवा निपुणता। यह बात काफी हद तक तर्क संगत है की बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता का माप है। समझने के लिये आप मानव के विकास के विज्ञान को ले सकते है।

       -- ऐसी क्रियाकलाप, जो कि मानव जाति को करती है और इसका परिणाम बुरा होता है। समय के साथ बहुत सारी चीजें बदल रही है। इसलिए हमें भी बदलना चाहिए। इतने सारे आविष्कार हो रहे है।

      -- "बदलने की क्षमता से तात्पर्य है उठो जागों और तब - तक ना रुको जब - तक आपका लक्ष्य आपको न प्राप्त हो।"
                                           प्रियंका राठौङ
                                              कक्षा - 9

बोल अनमोल

                       बोल अनमोल 
                               हिन्दी 

       एकता की जान है,
       हिन्दी देश की शान है,

                              हिन्दी से हिन्दुस्तान है, 
                              तभी तो यह देश महान है,
                              निज भाषा की उन्नति के लिए, 
                              अपना सबकुछ कुर्बान है,

      करें हिन्दी का मान, 
      तभी बढ़ेगी देश की शान 

                                              विद्यार्थी 
                                         सुनील प्रजापत 
                                            कक्षा :- 8

बेटी बचाओ बेटी पढाओ

                    

                बेटी बचाओ बेटी पढाओ 


  
     मैं लेती हूँ श्वास, 
     पत्थर नही इंसान हूँ,
                               कोमल मन है मेरा, 
                               वहीं भोला सा चेहरा,
     जज्बातों में जीती हूँ,
     बेटा नही पर बेटी हूँ,
                               कैसे दामन छुङा लिया, 
                               जीवन के पहले ही मिटा दिया,
     तुझ से ही बनी हूँ,
     बस प्यार की भूखी हूँ, 
                               जीवन पार लगा दूंगी,
                                अपना लो मैं बेटा भी बन जाऊँगी, 
     दिया नही कोई मौका,
     बस पराया बनाकर सोचा, 
                                एक बार गले से लगा लो,
                                फिर चाहे हर कदम पर आजमालो, 
     हर लङाई जीत कर दिखाऊँगी, 
     मैं अग्नि में पलकर भी जी जाऊँगी, 
                                चंद लोगों की सुन ली तुमने,
                                मेरी पुकार ना सुनी,
     मैं बोझ नही भविष्य हूँ,
     बेटा नही पर बेटी हूँ।

                                             निशा प्रजापत 
                                               कक्षा :- 6

MAGAZINE 2019 -20








                           महावीर सिंह 
                                प्राचार्य 
                  विद्याकुंज माध्यमिक विद्यालय 

                 प्रधानाचार्य की कलम से 
         पाठकों यह अंक मूल्य शिक्षा को समर्पित है। शिक्षा का उद्देश्य छात्रों के दैनिक जीवन मैं सादगी के भाव के साथ आदर्श का पालन करना है। जिससे वे सदाचारी एवं बलवान बनें और अपनी शिक्षा का उपयोग सामाजिक विकास तथा राष्ट्र निर्माण में करें। आज छात्र जीवन का वास्तविक मूल्यांकन न कर , पदवी एवं संपति पर अधिक ध्यान दिया जाता है। मनुष्य को निर्भय, अंहकार रहित, निःस्वार्थ बनाना ही शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। वर्तमान में छात्रों की शिक्षा कुछ अधिक पुस्तकीय हो गई है। वे व्यवहारिक उपयोगी ज्ञान की अपेक्षा डिग्री एव॔ ग्रेड्स प्राप्ति के पीछे ही परेशान रहते है। छात्र अपने कालेज जीवन में भी लक्ष्यरहित है। उनका कोई निश्चित लक्ष्य नही रहता । आत्म विकास तथा निज देश जाति को वैभवशाली बनाने में हाथ बंटाना ही उसका उद्देश्य होना चाहिए।

       ये ही आदर्श है जिनको अधिक उत्साह के साथ व्यवहारिक रूप में छात्र-छात्राओ के सम्मुख रखने की आवश्यकता है। मेरे विचार में यही शिक्षा मूल्य रखकर देश में परिवर्तन लाया जा सकता है एवं एक नये समाज नये भारत की परिकल्पना की जा सकती है।
        पाठकों उपरोक्त सभी मूल्यों को छात्र-छात्राएं सरलता से सीख सकें व जीवन आचरण में अपना सकें इसके लिए हमारी शाला सदा प्रयत्नशील रही है व रहेगी। इस हेतु हमने शाला के सभी छात्र-छात्राओ कों चार सदनों में बांटा हुआ है, जिन्हें समय - समय पर अनेक गतिविधियां करने को दि जाती है जिससे छात्रों में कार्य को स्वयं करने व अन्य से बेहतर करने की भावना जाग्रत होती है। शाला में एक मंत्री परिषद भी बनायी गयी है। जिसमें कक्षा 5 से 9 तक के छात्र-छात्राओ कों शामिल किया जाता है वे छात्र प्रातः प्रारंभ होने से लेकर छुट्टी होने तक एक - एक बच्चा घर चला जाए तब तक सभी गतिविधियां स्वयं संभालते हैं जिससे बच्चों में अनुशासन व नेतृत्व की भावना का विकास होता है। 
         हर साल शाला में हिन्दी व अंग्रेजी की वाद-विवाद प्रतियोगिताओ का इंटर स्कूल व इंटर कॉलेज स्तर पर आयोजन किया जाता है जिसमें बच्चे दूसरे स्कूल व काॅलेज के साथ भाग लेते है जिससे उनमें आत्मविश्वास का विकास होता है। इन सब के अलावा अन्य गतिविधियां भी संचालित रहती है जिससे प्रत्येक छात्र को अपने आपको परखने का व आगे बढ़ने का मौका मिलता है। शिक्षण, प्रशिक्षण में किसी प्रकार की कमी ना रहे इस हेतु स्कूल समय 
के अलावा अतिरिक्त कक्षाएं लगाकर भी प्रत्येक बच्चे पर अच्छे से ध्यान देकर कार्य किया जाता है।
        ये सभी गतिविधियां मूल्य शिक्षा को समर्पित है। आशा करता हूँ कि इनसे सभी उद्देश्य पूरे हो सकेंगे।
              धन्यवाद 
                                               महावीर सिंह 
                                              प्राचार्य, विद्याकुंज

MAGAZINE 2019 -20

          विद्याकुंज शाला परिवार ने सत्र :- 2019 - 20 में एक पत्रिका "सृजन" का विमोचन किया था इस कि विशेषता यह है कि इस में छपी रचनाएं शाला के छात्र-छात्राओ और अध्यापकों द्वारा रचित है। यह हमारा प्रथम अंक है। इस के माध्यम से हम छात्र-छात्राओ के लेखन कला को निखारने का प्रयास कर रहे । हम चाहते हैं की बच्चे पढ़ाई लिखाई, हस्तशिल्प, खेलकूद, के साथ - साथ अपने अंदर छिपी प्रतिभा को पहचाने। इस अंक में छात्र-छात्राओ द्वारा रचित कविताएं , कहानियाँ, पहेलियाँ , लेख , अद्भुत तथ्य, अनमोल वचन, टंग - ट्विस्टर ये (हिन्दी, और अंग्रेजी) में लिखे गए है । ये सब शाला के छात्र-छात्राओ द्वारा लिखे गए है और संपादन का कार्य संपादकीय टीम जिसमे कक्षा 6 से 10 तक के छात्र-छात्राएं व अध्यापक सामिल थे के द्वारा किया गया । 
संपादकीय टीम:- 
 हिम्मत प्रजापत कक्षा-10
 निशा कुमावत कक्षा - 9
 पार्थराज कटारिया - 8
 वर्षा कंवर - 7
 सलोनी कुमावत कक्षा - 6
अनुसुईया भाटी अध्यापिका 
सुनिला देवी अध्यापिका 

इस अंक में छपी रचनाओं को आप के लिए प्रस्तुत कर रहे है आप इसका आन्नद ले।