बेटी बचाओ बेटी पढाओ
मैं लेती हूँ श्वास,
पत्थर नही इंसान हूँ,
कोमल मन है मेरा,
वहीं भोला सा चेहरा,
जज्बातों में जीती हूँ,
बेटा नही पर बेटी हूँ,
कैसे दामन छुङा लिया,
जीवन के पहले ही मिटा दिया,
तुझ से ही बनी हूँ,
बस प्यार की भूखी हूँ,
जीवन पार लगा दूंगी,
अपना लो मैं बेटा भी बन जाऊँगी,
दिया नही कोई मौका,
बस पराया बनाकर सोचा,
एक बार गले से लगा लो,
फिर चाहे हर कदम पर आजमालो,
हर लङाई जीत कर दिखाऊँगी,
मैं अग्नि में पलकर भी जी जाऊँगी,
चंद लोगों की सुन ली तुमने,
मेरी पुकार ना सुनी,
मैं बोझ नही भविष्य हूँ,
बेटा नही पर बेटी हूँ।
निशा प्रजापत
कक्षा :- 6