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विद्याकुंज माध्यमिक विद्यालय

                    विद्याकुंज माध्यमिक विद्यालय 
     विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास का एक सर्वश्रेष्ठ स्थान 

                बीकानेर के शिव बारी रोड गली नंबर 5 में स्थित विद्या कुंज स्कूल जिसमें बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा शारीरिक और मानसिक रूप से व्यायाम खेलकूद और इसके अलावा पेंटिंग सिलाई सभी तरह से जीवन को जीने के लिए और अपनी कार्य कुशलता को बनाये रखने के लिए भी प्रेरित किया जाता है
विद्याकुंज विद्यालय के संस्थापक डॉ नरेंद्र सिंह राठौड के सानिध्य मे हमारी शाला के अध्यापक श्रीमान राजेन्द्र कुमार की नागरानी मे सभी छात्र-छात्राओ को प्रतिदिन प्रातःकाल शारिरिक व्यायाम करवाया जाता है जिससे विद्यार्थीयों शारिरिक व मानसिक विकास हो इन्ही विद्यार्थियो में से हमारी बास्केटबाल व टेबल टेनिस की टीम तैयार हुई है जो जिला स्तर पर टूर्नामेंट मे भाग लेती है। इस वर्ष हमारी शाला की टेबल टेनिस टीम ने जिला स्तरीय प्रतियोगिताओ मे भाग लिया और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया इन्ही मे से एक छात्र राज्य स्तर टूर्नामेंट के लिए चुना गया और इस छात्र राज्य स्तर पर हुई प्रतियोगिता मे उत्तम प्रदर्शन किया। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री महावीर सिंह जी के ज्ञान दर्शन से हमारी शाला की बोर्ड कक्षाओ का परीणाम 100% रहता है। आप सभी अभिभावक से अनुरोध है कि एक बार शाला मे अवश्य पधारें ।
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परिवर्तन (लेख)

                                परिवर्तन
समय के साथ हर क्षेत्र गतिविधि, सोच में परिवर्तन देखने को मिलता है। यदि हम कहें कि परिवर्तन प्रकृति का अनिवार्य हिस्सा है, तो भी इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मनोचिकित्सकों का ऐसा मानना है कि मनुष्य जो कुछ भी अपने पूरे जीवनकाल में सीखता या करता है- उसका 90% भाग तो वह अपने जीवनकाल के पहले पांच वर्षों में ही सीख जाता है- वह पहचानना सीखता है, चलना सीखता है, बोलना सीखता है, अपनी मनोभावना प्रकट करना सीखता है और न जाने क्या – क्या। ये सब तथ्य सिद्ध करते हैं कि मानव जीवन के पहले कुछ वर्षों में ही मानव कितने परिवर्तनों को बड़ी तेज़ी से आत्मसात करता जाता है।
   इस अवस्था के बाद व्यक्ति अपने टीन्स ( 13 से 19 वर्ष की आयु) में आते ही अनेको को मानसिक व शारीरिक परिवर्तनों का सामना करता है। शायद यही वो समयावधी है जिसमें हर माता- पिता अपने बच्चों का विशेष ध्यान रखते हैं क्योंकि यही वो समयावधि है जिसमें एक व्यक्ति को समझ नहीं आता कि आखिर उसके साथ हो क्या रहा है? उसकी आवाज बदलने लगती है, उसका शारीरिक ढांचा बदलने लगता है, उसकी शक्ल में बदलाव आने लगता है, उसके मित्र बदलने लगते है, उसके कार्यक्षेत्र में भी आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिलता है। सबसे महत्वपूर्ण बदलाव उसके सोच में आने लगता है। कई बार तो लगने लगता है मानो सारा जग ही उसके विरुद्ध है। शायद इन्हीं परिवर्तनों को देखकर माँ-बाप भी उसके प्रति सजग होने लगते हैं। यह सजगता बढ़ते हुए नौजवान को पाबंदियों (बाधाएं) लगने लगती हैं। वह उन बाधाओं को दूर करने के लिए विरोध प्रकट करने लगता है और समाज के बनाए नियमों को तोड़ने का प्रयत्न करने लगता है। इसे हम यूँ भी देख सकते हैं कि वह इन सामाजिक नियमों में परिवर्तन के लिए छटपटाने लगता हैमें छटपटाहट में वह जाने अनजाने में गलत रास्ते पर चल पड़ता है। इसका कारण शायद उस में अनुभव की कमी या सही मार्गदर्शन न मिलना प्रतीत होता है।
 इस तरह के परिवर्तन यहीं रुकने का नाम नही लेते। व्यस्क होने पर इंसान को अलग-अलग परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ता है। इनमें कड़वे, मीठे तत्कालीन अनहोने सभी तरह के अनुभव देखने में आते हैं। ज्यादातर परिस्थितियों का सामना करने का व्यक्ति के पास कोई अनुभव भी नहीं होता। इसका तत्काल उदाहरण हमारे सामने कोरोना महामारी का प्रकोप है, जिसने राष्टों तक के चूल हिला दि।
इस तरह बदलाव हम व्यक्तिगत, सामूहिक, सामाजिक व राष्ट्रीय पर भी अनुभव करते हैं। समय- समय पर आ रहे इन परिवर्तनों को हम सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिस्थिति के आधार पर भी समझ सकते हैं।
प्राचीन भारत के इतिहास को पढ़ने पर हमें पता चलता है कि हमारे सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन आया है। एक समय था जब भारत विश्व में सबसे धनाढ्य राष्ट्र था। आर्थिक दृष्टि से दुनिया में सभी राष्ट्र भारत से व्यापार करने की इच्छुक थे क्योंकि भारत की आर्थिक समृद्धि सबको आकर्षित करती थी। भारत एक सोने की चिड़िया मानी जाती थी।
इस आर्थिक समृद्धि का कारण या यहाँ की समृद्ध सामाजिक व राजनैतिक व्यवस्था।
उस समय भारत के राजतंत्र विद्यमान था। याने राजनैतिक इस दृष्टि से समाज का सबसे ताकतवर व्यक्ति राजा था। समाज या राष्ट्र की गतिविधियों राजा के सोच के अनुसार चलती थी। राजा की दूरदर्शिता राष्ट्र को ताकतवर या कमजोर बनाती थी। इतिहास से पता चलता है कि इन राजाओं की कार्यकुशलता और दूरदर्शिता ने ही भारत को दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र कई सदियों तक बनाए रखा ।
लेकिन समय के साथ इसमें भी परिवर्तन देखने को मिला। राजतंत्र कमजोर होता चला गया। उसमें अनेकों कमजोरियां देखने में आई। जो राष्ट्र दुनिया का सबसे ताकतवर व समृद्ध उसे परातंत्र का अनुभव भी करना पड़ा।
वर्तमान में हम एक लोकतंत्र है जिसका शाब्दिक अर्थ है - लोगों के द्वारा बनाया गया तंत्र अथवा लोगों द्वारा बनाई गई सरकार /प्रतिनिधि।
हम एक मानव के जीवनकाल का उदाहरण ले या राष्ट्र का - परिवर्तन अवश्यंभावी है। इससे कोई अछूता नहीं है। यह हमें समयानुकूल स्वीकार करना ही होता है।
लेकिन फिर भी मानव परिवर्तन का विरोध करता है, वह बदलती परिस्थितियों में असहज महसूस करता है।
क्या कोई इलाज है?
                                            Dr. N.S. Rathod

सफलता



                               सफलता

        एक आम आदमी के लिए सफलता के मानदंड उसके परिवार, समाज। या व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओ का मिला जुला खेल होता है। जो सबसे अलग कर गुजरता है वही सफल है। क्योंकि वही अलग रास्ता बनाता है। जोखिम लेने का साहस ही सफलता का आधारभूत सिद्धांत है। 
     हर व्यक्ति के भीतर किसी गतिविधि को लेकर उसके प्रति एक खास तरह की प्रतिक्रिया होती है। मनुष्य में वह शक्ति होती है जो असंभव को भी संभव बना सकती है। साहस ही कामयाबी की शुरुआत है। सफलता की कोई परिभाषा नहीं हो सकती है। हर एक व्यक्ति की सफलता के बारे में अलग अलग मायने होते हैं। एक लेखक एक किताब लिखकर खुश हो जाता है। ऊक पेंटर पेंटिंग बनाकर खुश हो जाता है चाहे उनकी वह पेंटिंग बीके या ना बिके उसके लिए पेंटिंग के सृजन में मिली खुशी ही उसकी सफलता है। सफलता को सिर्फ आर्थिक मापदंड से नहीं मापा जा सकता। आप किसी चीज़ को पाने के लिए खूब मेहनत करते है वह मेहनत सफल हो जाती है तो उसे सफलता हासिल करना मान लिया जाता है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि कड़ी मेहनत के बाद भी वह नहीं मिल पाता जो हमें चाहिए। ऐसा होने पर उस मेहनत को नकारा नहीं जा सकता है।
        सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे पहली बात जीवन में अनुशासन होना जरूरी है। आपका तन और मन दोनों स्वस्थ होने चाहिए। अगर शरीर स्वस्थ होगा तो दिमाग भी तेज चलेगा। आज के दौर में युवाओं को सीमित दायरे में कैद होकर नहीं सोचना चाहिए। जिस क्षेत्र में रुचि हो उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करे। पैसा खत्म हो सकता है। परन्तु अर्जित किया गया ज्ञान खत्म नहीं होता। जीवन में सबसे जरूरी है कि आप जो भी विषय चुने उसके बारे में दिल से महसूस करें स्वस्थ मन से चुनौती को स्वीकार करें। शिखर पर पहुंचने के लिए पहली सीढी पर पार करनी पड़ती है, सीधे सौवीं सीढी पर नहीं पहुंचा जा सकता है। असफल होने के डर से भागने के बजाय कोशिश करते रहे। इस डर से कि आप हार जाएंगे, सफलता के लिए कोशिश न करना आपकी सबसे बड़ी हार होगी । जीवन में लोगों के असफल होने का बड़ा और महत्वपूर्ण कारण यह है कि वह अधिकतर ठीक तरह से समझ ही नहीं पाते कि वे कौन हैं और अपने जीवन में क्या करना या बनना चाहते हैं। वे अपने लक्ष्य और महत्वाकांक्षाओं को ठीक तरह से पहचान ही नहीं पाते हैं और असफलता के डरकर पीछे हो जाते हैं। ऐसे में हम सफल होने के लिए सीख सकते हैं अपने आस पास? मौजूदा उन छोटे- छोटे जीवों से जो खुद को बचाने और सफल बनाने की कला में माहिर हैं। टीम वर्क  की भावनाओं के साथ हर संघर्ष में विजेता बनने की ताकत रखने वाले ये जंतु हमें सिखाते हैं कि सफलता मात्र सोचने से नहीं, कड़ी मेहनत से मिलती है। एक छोटी सी चींटी हमें सिखाती है मेहनत, ईमानदारी और चुनौतियों को लेने का साहस , एक बगुला हमें सीखाता है एकाग्रता, संयम और साहस अगर हम ये बात जान लें समझ लें और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करे लें तो सफलता की ओर बढ़ने से हमें कोई नहीं रोक सकता है। हम अपने लक्ष्य पर  जितना ध्यान देंगे, हमारा दिमाग उसे पाने में उतनी ज्यादा मदद करेगा वे सफलता प्राप्त करने के लिए साधन अवसर स्रोत ओर आवश्यकता की खोज में जुट जाएगा। आपको सफलता की ओर जाने से कोई नहीं रोक पाएगा एक दिन सफलता आपके कदम चूमेगी वो दिन जरूर आएगा जब सफलता आपकी दासी होगी।
                                                 लेखिका 
                                              अध्यापिका
                                           अनुसुईया भाटी

3rd KARNI SINGH TABLE TENNIS PREMIER LEAGUE

3rd KARNI SINGH TABLE TENNIS PREMIER LEAGUE
OUR SCHOOL STUDENTS 
BASANT KANWAR, UNDER 13yrs GIRLS 
 PRIYA NAYAK, UNDER 17yrs GIRLS 
 DEVESH NATH, UNDER 15yrs BOYS 
 MOHIT UNDER 15yrs BOYS 
WON BRONZE MEDAL


1.  BASANT KANWAR, UNDER 13yrs GIRLS

2. PRIYA NAYAK, UNDER 17yrs GIRLS 
3. DEVESH NATH, UNDER 15yrs BOYS 


4. MOHIT UNDER 15yrs BOYS 

सांचू बोर्डर चैक पोस्ट, शैक्षणिक भ्रमण , सीमा दर्शन

                   
                   सांचू बोर्डर चैक पोस्ट 
                       शैक्षणिक भ्रमण 
                        सीमा दर्शन 
         आज हमारे विद्यालय विद्याकुंज माध्यमिक विद्यालय से शैक्षणिक भ्रमण हेतू सांचू बोर्डर चैक पोस्ट पर ले जाया गया व॔हा आने जाने की पूरी व्यवस्था बी.एस.एफ द्वारा की गई । बी.एस.एफ. की बस से शाला के छात्र-छात्राओ ने प्रातः 6:20 पर यात्रा प्रारंभ की हमारे साथ 2 सेना के जवान थे उन्होने हमे बहुत अच्छे से गाइड किया हमने भारत माला रोङ देखी वहा हमे बताया गया कि इस रोङ पर फाइटर जैट भी उतारे जा सकते हैं इमरजेंसी के समय इसके बाद हम रणजीत पूरा से आगे मारूति पोस्ट पहूँच जहा से आगे पाकिस्तान बोर्डर की शुरूआत होती है वहा हमने देखा की भारत की सीमा मे तारबन्दी की हुई है बोर्डर पर लाइटिंग की बहुत अच्छी व्यवस्था है 24 घन्टे लाइट रहती है। वहा बनी छोटी पोस्ट पर आर्मी के जवान पूरी मुस्तैदी के साथ अपनी ड्यूटी करते है दिन हो या रात हमे बताया गया की रात होने से पहले उन्टो के पिछे लकडी का फटा बांधकर तारबन्दी के पास की जमीन को समतल किया जाता है अगर रात मे कोई बोर्डर पार आ जाये तो उसको पैरो के निशान से पकडा जा सके ऐसा होना सम्भव तो नही है क्योंकि रात में जवान पट्रोलिग करते है जिस के कारण किसी का भी बोर्डर पार करके आना सम्भव नही है। जब सांचू बोर्डर चैक पोस्ट पर पहुंच तब हमे वहा की चोकी से बोर्डर पार पाकिस्तान कि चोकी दिखाई गई हमने देखा कि उस तरफ तारबन्दी भी नही थी उस तरफ बनी चोकी भी टूटी-फूटी थी हमे बताया गया कि वहा पीने का पानी की भी व्यवस्था अच्छे से नही है।
इसके बाद हम सब सांचू बोर्डर चैक पोस्ट हेड आफिस गये वो शानदार जगह थी वहा पर जवानो के लिए आराम करने खाना खाने और उन के लिए मेडिकल कि भी बहुत अच्छी व्यवस्था थी। वहा पर हमे उस चोकी के इतिहास को जानने का अवसर मिला कि किस तरह 1965 व 1971 के युद्ध मे पाकिस्तान ने इस पर कब्जा करने कि कौशिक कि और हमारे जवानो ने उस वापस खाली करवा लिया था वहा पर सांचू माता मन्दिर बना हुआ है जिसकी बहुत मान्यता है। उस जगह पर बनी दर्शक गैलरी भी देखी । उस गैलरी में सन्1965 व 1971 के युद्ध के दौरान जो दुष्मन सेना को हरा कर जो हथियार उन से लिए गए थे वो प्रदर्शित किये गये थे इसके साथ ही वो हथियार भी थे जो सेना के द्वारा पहले इस्तेमाल किये जाते थे ओर फोटो प्रदर्शनी भी थी जिसमे B.S.F द्वारा भारत के अलग- अलग सीमाओ किस प्रकार कार्य किया जाता है ये दिखाया गया था दुर्गम इलाको मे वो लोग किस प्रकार काम करते है ये सब हमने जाना । सांचू देश की एकमात्र ऐसी सीमा चोकी है जंहा पर्यटकों के लिए भारत-पाक युद्ध 1971 मे जीत के सिरमौर रहे दो T-55 टैंक तैनात किए गए है। ये टैक 1965 मे लाए गए थे 1971 की लडाई मे 74 आर्म्ड रेजिमेंट के साथ युद्ध मे पश्चिमी सरहद पर गोले बरसाय। 43 साल तक इनकी सेवाएं लेने के बाद वर्ष 2008 मे सेना से रिटायर कर दिया गया । इन टैंकों का वजन लगभग 39 टन था ये टैक 105 एम.एम मशीन गन तथा 12.7 एम.एम एंटी एयरक्राफ्ट गन से लैस थै। इन में चारों तरफ घुसकर गोला दागने की क्षमता थी। श्री पुष्पेन्द्र सिंह राठौड उप महानिरीक्षक, क्षेत्रीय कार्यालय सीमा सुरक्षा बल बीकानेर के निरंतर अथक प्रयासों से अप्रैल 2022 को इन टैंकों को "सेंट्रल आर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल डिपो किरकी पुणे" से लाकर सीमा चोकी सांचू मे रखा गया। इन टैंकों का नाम सीमा सुरक्षा बल की सीमा चोकी 'साचू' और 'खरूला' के नाम पर रखा गया जंहा पर भारत- पाक युद्ध लङा गया था। 
इस शैक्षणिक भ्रमण के लिए हम:- 
डी.आई.जी पुष्पेंद्र सिंह जी राठौड़ सर का विद्याकुंज शाला परिवार की तरफ से विषेश धन्यवाद उन्होने हमारी शाला के छात्र-छात्राओ के लिए "सीमा दर्शन बी.ओ.पी.सांचू " मे सीमा दर्शन की व्यव्स्था की । 
                🇮🇳🇮🇳🙏🏻जय हिन्द 🙏🏻🇮🇳🇮🇳

                                                   अध्यापिका                                                             अनुसुईया भाटी