कविता " पुरानी बात हो गई"

                        
                       पुरानी बात हो गई

अब न कोई खुरचण खाता है न मळाई,
एक दिन से ज्यादा कहाँ रुकता है अब जमाई ।

वो झूलता छींका और वो जिमावणी,
बीती बात हो गई अब वो मिट्टी की कढावणी ।

देखते देखते न जाने क्या क्या बदल गया,
उखळ-मूसळ, चंगेरी, कुंडा तो गायब ही हो गया।

अब न इण्डि मिलती है न पिढी,
बहुत सारी चीजों का नाम तक नहीं जानती है नई पीढ़ी।

छप्पर की बाती में चहचहाती चिड़िया न जाने कहाँ उड़ गई,
मोबाइल आते ही दादा-दादी की कहानी भी खो गई।

हथचक्की, देगची, घीळडी सब पुरानी बात हो गई,
कुकर आते ही रसोई की खुशबू भी चली गई।

'कृष्ण' याद कर न हो उदास कुछ नहीं है अब तेरे हाथ,
आदमी भी तो बदल गए हैं अब वक्त के साथ
🙏                                                
                                                     अध्यापक 
                                                     राजेंद्र कुमार