समझदार बेटी





                         समझदार बेटी

कई साल पहले की बात है भरतपुर नामक एक गांव में  रामानंद का परिवार रहता था। वह अपनी पत्नी तथा बेटा, बेटी के साथ रहता था। उसकी पत्नी का नाम गौरी बेटे का नाम रोहित बेटी का नाम राधा था। रामानंद व्यपार करता था। सब बहुत खुशी से रहते थे। रोहित आठवीं  में और राधा सातवीं कक्षा में पढती थी। रोहित पढने में होशियार था पर वह फिजूल खर्च और गलत संगत में पङ गया था। वह किसी का कहना भी नही मानता था। राधा पढने बहुत अच्छी थी उस जो भी पैसे मिलते वह उसे जमा करती थी। वह अपनी माँ की घर के काम मे मदद करती थी । एक बार रामानंद को काम मे बहुत घाटा हुआ इस कारण से वह बिमार रहने लगा था। अब घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया था। तब से सभी दूखी रहने लगे थे। उसकी पत्नी गौरी ने हार नही मानी थी। गौरी लोगों के घरों में काम करके रोहित और राधा को पढाती और घर चलाती थी।  रोहित के व्यवहार मे कोई बदलाव नही आया वह पहले की तरह ही फिजूल खर्च करता और माँ का खर्चा भी बढ़ाता। राधा हमेशा अपनी माँ की मदद करती थी। एक दिन ऐसा आया जब गौरी को काम से निकाल दिया अब वे सब सङक पर आ गए। अब उन के पास कोई काम नही था घर चलाना भी मुश्किल हो गया था। इस कठिन समय में राधा ने समझदारी से काम लिया और अपनी माँ से डोसा बनाकर बेचने को कहा । उस की माँ ने कहा की इस के समान के लिए पैसे कंहा से आयेगें तब राधा ने अपने बचाए हुए पैसो से डोसा बनाने का सारा समान खरीद और काम की शुरुआत की उनका काम अच्छा चलने लगा । धीरे - धीरे उन के हालात में सुधार होने लगा। उनका परिवार फिर से खुशहाल बन गया था। फिर भी उसका भाई न सुधरा तब उसकी माँ ने उस घर से निकाल दिया और कहा की तुम खुद कोई काम करके पचास हजार रुपए कमा कर लाओगे तब ही में तुम घर मे आने दूंगी । परन्तु तुम यह पैसे किसी से मांगोगे नही तथा एक महीने के अंदर अंदर लाकर देने होंगे नही तो मैं अपनी सारी जायदाद राधा के नाम कर दूगी। 
           उसकी माँ ने उस दश हजार रुपए दिए उस काम शुरू करने के लिए।  कुछ दिनों तक तो रोहित पैसे उङाता रहा। तथा जब एक दिन उस माँ की बात याद आई तो फिर उसने एक रिक्शा खरीदा और उस चलाने लगा। एक दिन जब गौरी समान लाने बाजार गई तो उसने एक रिक्शा किया वह रिक्शा चलाने वाले को देख कर चोंक गई क्योकि रिक्शा रोहित चला रहा था। यह देखकर गौरी बहुत खुश ही की रोहित अब मेहनत करने लगा है, वह सुधर गया है। उसने बेटे को घर वापस आने को कहा। बेटे को मेहनत करता देख माँ बहुत खुश हुई। कुछ समय बाद अपने दोनो बच्चों का विवाह अच्छे घरों में करवा दिया। माँ अपना कर्तव्य पूरा करके बहुत खुश थी। अपनी बेटी की तीक्ष्ण बुद्धि से खुश होकर वह भगवान से यही प्रार्थना कर रही थी कि ऐसी समझदार बेटी सब के घर में हो।
                                          पूजा प्रजापत 
                                          कक्षा - 7