दूसरो को परखना हमारी सोच पर निर्भर करता है।
ये बात महाभारत के समय की है। पांडवों और कौरवों को गुरू द्रोणाचार्य शिक्षा दे रहे थे। एक बार उनके मन में अपने शिष्यों की परीक्षा लेने का विचार आया। उन्होंने अपने शिष्य दुर्योधन को अपने कक्ष में बुलाया और उससे कहा "वत्स एक काम करो, किसी अच्छे आदमी की खोज करो और उसे मेरे पास लेकर आओ" । दुर्योधन कहा "ठीक है आचार्य, मैं अभी ही आश्रम से निकल जाता हूँ और अच्छे आदमी की खोज शुरू कर देता हूँ" दुर्योधन कुछ समय बाद वापस आश्रम लौटकर आया और आचार्य को बताया, "आचार्य मैंने पूरे ध्यान से हर जगह जाकर दूर- दूर तक खोजा लेकिन मुझे एक भी अच्छा आदमी नही मिला जिसे मैं आपके पास ला सकता "। इस पर आचार्य ने कहा " ठीक है, तुम युधिष्ठिर को मेरे पास भेज दो" युधिष्ठिर जब आचार्य के पास आया तो उन्होंने उसे कहा "शिष्य एक काम करो, सबसे बुरे आदमी की खोज करो और उसे मेरे पास लेकर आओ" । युधिष्ठिर "ठीक है आचार्य जाता हूँ "। कुछ दिनों बाद युधिष्ठिर भी बिना किसी को अपने साथ लाए आश्रम लोट आया। आचार्य ने उससे पूछा "शिष्य तुमने कई शहरों का इतने दिनों तक भ्रमण किया और फिर भी तुम एक भी बुरे आदमी को लेकर नही आये"। युधिष्ठिर बोला " जी गुरूजी मुझे किसी भी आदमी में इतनी ज्यादा बुराई नही दिखी कि उसे सबसे बुरा आदमी मानकर आपके पास ला पाता"। इस बात पर बाकि सारे शिष्य बङे हैरान हुए और आचार्य से बोले गुरूजी ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि दुर्योधन को एक भी अच्छा आदमी नही मिला युधिष्ठिर को एक भी बुरा आदमी नही मिला" । तब "गुरुजी ने समझाया "शिष्यों जब हम किसी के बारें में देखते हैं तो उसे उस नजरिये से देखते हैं जैसे हम होते है। इसी प्रकार युधिष्ठिर को कोई भी बुरा व्यक्ति नजर नही आया क्योंकि वह स्वंय अच्छा है तो उसे बाकि सब भी अच्छे लगे और कोई बुरा नही लगा"। केवल अपने - अपने नजरिए का फर्क है। तुम जिस व्यक्ति में जो देखना चाहते हो तुम्हे वही दिखेगा । इसी प्रकार आपकी सोच अच्छी होगी तो आपके लिए सब अच्छे होंगे अगर सोच बुरी होगी तो सब बुरे दिखाई देंगे।
दीपिका मेघवाल
कक्षा - 7